यह एक नदी है जो करीब 102 किलोमीटर की यात्रा करते हुए तीन जनपदों से गुजरती है। सिद्धार्थनगर के सिकहरा ताल से गोरखपुर के सोहगौरा तक। सिकहरा ताल अचिरावती यानि राप्ती नदी की छाड़न है। यहीं से आमी नदी निकलती है और सोहगौरा के पास राप्ती में मिल जाती है। कहा जाता है कि आमी नदी का पुराना नाम अनोमा था। इसी नदी तट पर गौतम बुद्ध राजसी ठाठ त्याग कर सत्य की खोज में निकल पड़े थे। सोहगौरा वह स्थान है जहां पर मिले ताम्रपत्र से पता चलता है कि यहां पर मौर्यकालीन राजकीय भंडारगृह था। आमी के तट पर सैकड़ों गांव है जहां हजारों लोग रहते है। इसके तट पर संत कबीर की निर्वाण स्थली मगहर है। जनश्रुति है कि कबीर ने आश्रम में रहने वाले लोगों को आसानी से पानी उपलब्ध कराने के लिए आमी नदी को आश्रम के पास बुला लिया था। इसीलिए आमी नदी उल्टा घूमकर मगहर के कबीर आश्रम के पास आई थी। आमी का पानी आम की तरह मीठा था। आज क्या हाल है इस नदी का ? इसी नदी पर गोरखपुर जिले के बांसगांव ब्लाक का कूड़ाभरत गांव है। ग्राम प्रधान सुधा त्रिपाठी के दरवाजे पर 100 से ज्यादा लोग इकट्ठे हैं। पूर्व प्रधान सच्चिदा तिवारी कहते हैं कि आमी नदी का पानी पहले लाल रंग का हुआ फिर इसमे कीड़े दिखने लगे और अब यह नाबदान की तरह हो गया है। शिवनारायन के लिए आमी मछलियों की खान थी लेकिन अब इसमें कोई जलचर नहीं है। संजय सिंह आमी नदी के पानी को बहुत अच्छे पाचक के रूप में जानते हैं लेकिन आज इस नदी का पानी शरीर पर पड़ जाए तो शरीर में फफोले पड़ जाते हैं। अंधे साधु पासी आमी नदी की मछलियों से अपनी आधी जिंदगी गुजार चुका है लेकिन अब उसके लिए रोटी लुग्गा दुलम हो गया है। पूर्व सैनिक और अब सरया तिवारी के प्रधान जितेन्द्र प्रसाद बेलदार को गांव के 500 मछुआ परिवारों के बेकार हो जाने का गम है। बेलडांड के प्रधान सुरेश सिंह नदी में मछली पकड़ने की नीलामी से ग्राम पंचायत को होने वाली 15 हजार रूपए की आय के समाप्त हो जाने से चिंतित हैं तो खूंटभार के गब्बू प्रसाद मद्देशिया कहते हैं कि नदी से अब दुर्गन्ध आती है कि आस-पास के लोगों का जीना मुहाल हो गया है। परमानन्द कहते हैं कि नदी इतनी विषैली हो गई है कि इसका पानी खेत में चला जाए तो वहां की फसल जल जाए। नदी के किनारे के खर-पतवार, शीशम, बबूल के पेड़ सब खत्म हो गए हैं। हरिनाथ, परभंस, बिकाउ लल्लन, छेदी पासी, मन्नू यादव, रामधारी की भैंस नदी का पानी पीकर मर गई। रामसांवर के 15 सुअर मर गए। प्रदेश और देश स्तर के आधा दर्जन तैराक देने वाले कूड़ाभरत गांव के लड़कों की आमी में तैराकी बंद है। इसी गांव के पास कटका गांव है। निषाद बाहुल्य इस गांव के मछुआरांे के जाल खूंटी में टांग दिए गए हैं और वे मजदूरी करने मुम्बई चले गए हैं। सुखमती कहती है कि नदी के पानी से ही हम सब खाना बनाते थे। आज नदी तो क्या हैण्डपम्प का पानी इस्तेमाल करने लायक नहीं रहा। गोल्हुई को दाल सब्जी नहीं खरीदना पड़ता था क्योंकि नदी से उन्हें रोज मछली मिल जाती थी। वह कहते हैं कि नदी इस कदर प्रदूषित हा गई है कि इसके तट पर लोग अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं आते। अब वे गोला और बड़हलगंज जाते हैं हालांकि इसमें उनका पैसा भी खर्च हो जाता है।
एक नदी और हजारों लोगों का जीवन आधार। प्रदूषण नियत्रण बोर्ड कहता है कि आमी का पानी मानव और मवेशियों के पीने लायक नहीं रहा। सिंचाई तभी की जा सकती है कि जब परीक्षण किया जाए। बोर्ड के अनुसार आधा दर्जन उद्योगों का कचरा-गंदा पानी नदी में आता है लेकिर शुद्ध होने के बाद। उसकी रिपोर्ट के अनुसार सभी उद्योगों ने ट्रीटमेन्ट प्लान्ट लगा लिया है और सब ठीक है। फिर नदी की यह हालत कैसे है ? इस सवाल पर बोर्ड चुप हो जाता है। लोग संघर्ष करने के लिए संगठित हो रहे हैं। धरना-प्रदर्शन में सबसे ज्यादा महिलाए आती है। कटका गांव के नौजवनों से धरना-प्रदर्शन में आने की अपील की जाती है तो एक बुजुर्ग धीरे से बोलता है कि केहू रही तब न आई। सब त बाहर चल गईल। रोजी-रोटी के चक्कर में। चलते-चलते एक और बुजुर्ग बोल पड़ता है-नदिया की जिया दीं। हमरो जिनगी बढ़ जाई। क्या यह सिर्फ एक नदी की कहानी है ? नहीं सैकड़ों गांवों के हजारो लोगों की जिंदगानी की।
Sunday, February 21, 2010
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1 comment:
bahut umda hai silsila banai rakhain.
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